अनुच्छेद 370 मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट 11 दिसंबर को अपना फैसला सुनाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सोमवार, 11 दिसंबर को संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा। इसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला था।अनुच्छेद 370, जिसे बाद में सरकार के द्वारा 6 अगस्त, 2019 को रद्द किया गया था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. के नेतृत्व में 5 सितंबर को एक संविधान पीठ ने चंद्रचूड़ की पीठ ने सुनवाई पूरी कर चुका था और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
16 दिनों तक चली इस सुनवाई में याचिकाकर्ता और सरकार दोनों की ओर से अनुच्छेद 370 को रद्द करने और इसे खत्म करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की संवैधानिकता पर प्रस्तुति करने के बाद जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
सरकार के द्वारा दिया गया तर्क?
अटॉर्नी-जनरल आर. वेंकटरमणि, सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता और वकील कानू अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत सरकार ने तर्क दिया कि पूर्ण एकीकरण के लिए इसे निरस्त करना जरूरी था। जम्मू और कश्मीर भारत संघ में। सरकार ने दावा किया कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद साढ़े चार वर्षों में घाटी ने समृद्धि का अनुभव किया है। इसमें आगे कहा गया कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव आसन्न थे और जमीनी स्थिति सामान्य होने पर क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा फिर से मिल जाएगा।
मेहता ने इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर “असाधारण रूप से चरम स्थिति” में केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित हुआ। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि, 2019 में निरस्तीकरण के बाद, आतंकवाद की घटनाएं, घुसपैठ, पथराव और सुरक्षाकर्मियों के हताहत होने की घटनाओं में क्रमशः 45.2%, 90.2%, 97.2% और 65.9% की कमी आई है।
याचिकाकर्ताओं ने क्या दी दलील?
कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, दुष्यन्त दवे और गोपाल शंकरनारायणन सहित वरिष्ठ वकीलों की एक टीम द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि संघ, इसका लाभ उठा रहा है। संसदीय बहुमत ने राष्ट्रपति के माध्यम से कार्यकारी आदेशों का उपयोग करके एक पूर्ण राज्य को जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया। उन्होंने इस कदम की विशेषता इस प्रकार बताई संघवाद पर हमला और संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य संविधान के निर्माण के बाद 1957 में जम्मू और कश्मीर संविधान सभा भंग होने के बाद अनुच्छेद 370 को स्थायी दर्जा प्राप्त हुआ। श्री सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 368 (संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति) अनुच्छेद 370 पर लागू नहीं होती।
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